Main Tumhari Takta Khet Hoon | Love Poetry | मैं तुम्हारी राह तकता खेत हूँ | खेत का बारिश की बूंदों से आग्रह |
नमस्कार कला प्रेमियों,
बारिश का मौसम चल रहा है । किसान बारिश के इंतजार में बैठे हैं । कहीं पर कम तो कहीं पर अधिक बरसात हो रही है । इसी बीच किसान का खेत बारिश की बूंदों से अपने फसल रूपी परिवार के लिए धरती पर बरसने का आग्रह करता है।
जो की मैंने (कर्ण मिश्रा ने ) नीचे लिखी कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है ॥
कृपया पूरी पढ़ें एवं अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ साझा करें॥
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कविता
तुम टपकती बूंदों सी,
मैं रेगिस्तान की रेत हूं।
तुम हो मौसम की पहली बारिश,
मैं तुम्हारी राह तकता खेत हूं।।
आओ जब तुम इस धरा पर,
मेरी खुशियां ले आना।
मेरा घर फिर फल जाए,
इसी खुशियां ले आना।।
तुम बादलों की गड़गड़ाहट से आता हुआ संकेत हो,
तुम हो मौसम की पहली बारिश, मैं तुम्हारी राह तकता खेत हूं।।
तुम टपकती बूंदों सी,
मैं रेगिस्तान की रेत हूं।
तुम हो मौसम की पहली बारिश,
मैं तुम्हारी राह तकता खेत हूं।।
आओ जब तुम इस धरा पर,
मेरी खुशियां ले आना।
मेरा घर फिर फल जाए,
इसी खुशियां ले आना।।
तुम बादलों की गड़गड़ाहट से आता हुआ संकेत हो,
तुम हो मौसम की पहली बारिश, मैं तुम्हारी राह तकता खेत हूं।।
लहरा जाऊं मैं फिरसे,
तुम हरियाली लेती आना,
फिर खिल जाए मेरी फसल,
ऐसी खुशहाली लेती आना।
तुम लेते आना संग अपने, हल्की मद्धम धूप को,
लेते आना मेरा वो, हंसता हुआ स्वरूप को।
धन्य करो माटी को मेरी,
खोल दो अपनी जटाओं को।
धान्य मेरा करो सफल,
बरसाकर अपनी घटाओं को।
तुम इंद्रधनुष बनाती हुई, मैं धरा पर उड़ती रेत हूं।



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